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Friday, December 31, 2010

नये वर्ष की शुभकामनायें

(२ जनवरी १९९४ को इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले दैनिक 
" अमृत प्रभात " में प्रकाशित मेरी कविता )
नये वर्ष की शुभकामनायें

गाँवों की धूलों पर 
और, खेतों की मेंड़ों पर 
टहलते हुए किसान को 
नये वर्ष की शुभकामनायें ।।

दादा की चौपालों से 
और, थिरकती हुई चालों से
गूंजने वाली झंकारों को
नये वर्ष की शुभकामनायें ।।

बच्चों की किलकारियों  से
और, बूढी माँ  की लोरियों से
निकलने वाली आवाज को 
नये वर्ष की शुभकामनायें ।।

तंग जीवन की घुटन से
और, अरमानों की टूटन से
निकलने वाली चीत्कार  को 
नये वर्ष की शुभकामनायें ।।

देहातों की पगडंडियों से
और, बांसों के झुरमुटों से
गुजरने वाले पवन को 
नये वर्ष की शुभकामनायें ।।

Chitra Google Sabhar


Sunday, December 26, 2010

फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी

Wg Cdr BSK Kumar
             ये प्रस्तुति मेरी बड़ी कहानी " फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी " का  एक छोटा हिस्सा है. भारतीय वायु सेना के इस जांबाज हेलीकाप्टर पायलट विंग कमांडर बी. एस. के. कुमार को सुनामी  के दौरान शीघ्र कार्यवाही, जांबाज दिलेरी , हैरत अंगेज कारनामों और देश- सेवा के फर्ज को अपने परिवार से भी ऊपर समझाने के लिए , शांतिकाल में वीरता के लिए दिए जाने वाले दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार " कीर्ति चक्र" से नवाजा गया.
          अंडमान और कार निकोबार के निवासी 25 दिसम्बर 2004 की देर रात जब क्रिसमस की पार्टी के बाद जब अपने अपने घरों में नींद  के आगोश में समायें होंगे तो उन्हें जरा भी इस बात का अंदेशा नहीं रहा होगा की अगली सुबह उनकी नींद किसी प्यारे  एहसास के साथ नहीं बल्कि सुनामी की भीषण गर्जना के साथ टूटेगी. 26 दिसम्बर 2004 की सुबह जब सुनामी ने दस्तक दी तो लोंगों की अलसाई नजरे खौफनाख  मंजर देख कांप उठी . हजारों लोग पल भर में बेघर हो चुके थे और जीवन की आखिरी लड़ाई लड़ते हुए आसमान की तरफ किसी फ़रिश्ते के इंतजार में देख रहे थे.
             विंग कमांडर बी. एस. के. कुमार कार निकोबार स्थित एयर बेस  में MI-8 हेलीकाप्टर फलाईट  के कमांडिंग ऑफिसर थे. पहले तो वे अपनी पत्नी की आवाज को अनसुनी करते हुए ध्यान नहीं दिया . लेकिन तुरंत ही उन्हें किसी बड़े खतरे का आभास  हो गया  .  किसी तरह वे अपने पत्नी और दो बच्चों के साथ घर से बाहर आने में सफल हुए तो बाहर का मंजर देख उनका दिल दहल गया. सुनामी का कहर लोंगों पर टूट रहा था और देखते देखते लोग मौत के मुंह  में समा रहे थे. चारों तरफ से मदद के लिए आवाज आ रही थे.
Tsunami disaster at Air Base Car Nicobar
          उन्होंने ने बिना तनिक भी देर किये हैंगर की तरफ  दौड़  लगाई. कुछ ही मिनटों में एक MI-8 हेलीकाप्टर हवा में टेक ऑफ कर चुका था. उन्होंने चेन्नई स्थित ताम्ब्रम एयर बेस  को इस बात की सूचना दी. यह अंडमान और कार निकोबार द्वीप पर मची तबाही की पहली खबर थी. बड़े- बड़े पेड़ उखड़कर पानी में तैर  रहे थे . लोग उसे पकड़े मदद की गुहार कर रहे थे. कुमार ने अपने साथी सैनिकों के साथ बचाव कार्य को अंजाम देना शुरू किया . जी-टी वी से एक कार्यक्रम में बकौल उनकी पत्नी बिंदु लक्ष्मी, " हवा में हेलीकाप्टर देख हमें  अंदाजा हो गया था की ये जरूर बी .एस.के. ही होगे और हम  सबने राहत की साँस ली.
          करीब 5 घंटे के अथक मेहनत के बाद लगभग 350 लोंगों को ऊंचाई पर स्थित स्थन पर पहुँचाया गया. इस आपरेसन के दौरान काफी मुश्किलात का भी सामना करना पड़ा, क्योंकि हेलीकाप्टर के विन्च के सहारे भी 2 या 3 लोंगों को लाना पड़ रहा था. कुमार को उम्मीद थी की विन्च यह भार उठा  लेगा , क्योंकि इसकी अधिकतम भार सीमा लगभग 150 कि. ग्रा .रहती है. परन्तु फिर भी ये एक भारी रिस्क था और हेलीकाप्टर समेत बचाव दल के सदस्यों के साथ कुमार की जान को भी खतरा था मगर इसकी परवाह ना करते हुए उन्होंने अपने कार्य को जारी रखा. पहले हेल्काप्टर का ईधन समाप्त होने के बाद उन्होंने दूसरा हेलीकाप्टर चेंज    किया. कई बार फायर  टेंडर के छत  पर सींढी लगाकर  उसपर लोंगों को उतारा गया और फिर उन्हें सही जगह पर पहुचाया गया.
         हेलीकाप्टर चेंज - ओवर के दौरान ही उन्हें हाथ के इशारे से थम्प्स अप  करके उनके परिवार के सलामत और सही होने कि जानकारी दी गयी. जब वो इस आपरेशन को अंजाम देते समय लोंगों को चिल्लाते और मदद के लिए पुकारते देख रहे होंगे तो  वे अपने परिवार के सलामती के  बारे में सिर्फ सोंच सकते रहे होंगे ना कि यकीं, क्योंकि काफी देर तक उन्हें ये भी नहीं पता था कि उनका परिवार किस हाल में है. बकौल कुमार , " ऐसे हादसे में पहली प्राथमिकता अपना परिवार न होकर ज्यादा मुसीबत - जदा दुसरे  लोंग होने चाहिए"
Dharmsila with 4 years old son, w/o Late Cpl  RN Singh,  survived by  this operation but her husband was not so lucky

.            कुमार कि इस जांबाजी  और दिलेरी से प्रेरणा लेकर जिंदा बचे वायुसैनिकों ने नए जोश के साथ इस बचाव कार्य में सहयोग  दिया. रन - वे पूरी तरह से क्षतिग्रस्त  हो गया था.  पुरे दिन बचाव कार्य चलता रहा. परन्तु अँधेरे में मुश्किलें आने लगी थी. रन वे के किनारे के लाईट  इंडिकेटर टूट चुके थे. मगर इस काम को भी कुमार और उनके साथियों ने रन -वे के किनारे केरोसीन के लेम्प जलाकर  इंडिकेटर के रूप में इस्तेमाल किया . कुमार कि ये उड़ान इस मायने में  भी महत्वपूर्ण थी कि वे यह उड़ान फ्लाईंग यूनिफार्म    में  नहीं बल्कि बनियान और लोअर में नंगे पाँव उडी थी और बचाव कार्य को नंगे पाँव ही अंजाम दिया था, क्यंकि सब कुछ पानी में बह गया था. यह ये साबित करता है भारतीय सेनायें विकट परिस्थिति में भी किस तरह से अपने फर्ज को निभा सकती है.
                          केरल में बैठे कुमार के माता पिता अपने बेटे के सलामती के लिए परेशान थे क्योंकि मोबाईल  संपर्क टूट चुका था और  मीडिया के हवाले से सुनामी के भीषण विनाश की ख़बरों से उनका  भी मनोबल टूट गया था. कार निकोबार का संपर्क पुरे देश के एयर  बेस से टूट गया था. मगर जब संपर्क स्थपित हुआ और दक्क्षिण   कमान मुख्यालय त्रिवेंद्रम से उन्हें अपने बेटे कि सलामती और उसके जांबाज कारनामों कि खबर मिली तो  उनका सीना फक्र से चौड़ा जरूर हो गया होगा. 15 जुलाई 1963 को केरल के क्वीलोन जिले में जन्में बी. एस. के. कुमार ( भगवान श्री कृष्ण कुमार ) का पूरा नाम जब उनके माता पिता ने रखा होगा तो उन्हें जरा भी  इस बात का ये अंदेशा नहीं रहा होगा कि ये सचमुच  सैकड़ों जिंदगियों के लिए एक दिन भगवान  का ही रूप  लेकर आयेगें. कीर्ति चक्र से नवाजे गए बी.एस.के कुमार आज वायु सेना में ग्रुप कैप्टन है. यह प्रस्तुति श्री  कुमार जी को नमन और सुनामी के कारण जान गवा बैठे हजारों लोंगों को एक विनम्र  श्रद्धांजलि  है.

Tsunami Memorial at Kanyakumari

Monday, December 13, 2010

हम सबके नाम एक शहीद की कविता

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संसद हमले की 9 वीँ बरसी पर उन शहीदोँ को नमन और एक कविता उन्हीँ एक शहीद की जुबानी हम सबके लिये :-

माँ !
देश ने भले खोया हो
एक बहादुर सिपाही
मगर तुमने तो खोया
सिपाही के साथ
एक बेटा भी
एक माँ का दर्द बेटे से अच्छा
शायद ही कोई जाने
जिन लोगों ने
भारत माँ को दुत्कारा
वो किसी दूसरे के माँ के आँसू
क्या पोंछेगे ?

पत्नी !
मैँ अपराधी हूँ
तुम्हारें माथे का
सुहाग छिनकर
हाँ गर्व जरूर हुआ होता
जब मेरे जाने के बाद
तुम्हारे आँखोँ का आँसू
पोछने के लिये
एक अरब हिन्दुस्तानियोँ मेँ सेँ
एक हाथ भी उठा होता।

बेटा !
कब तक देखोगे
मेरे शहादत पर
घोषित फ्लैट का रास्ता
क्योँकि अब उसमेँ कोई
और काबिज है
राहत पैकेज
जो तुम तक पहुँचते पहुँचते
आधे से भी कम रह जायेगी
हमदर्दी
जिसकी जरूरत
मेरे ख्याल से
एक शहीद के बेटे को
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नहीँ पड़नी चाहिये
इसलिये अब उठो
अपने पैर पर खड़े होवो
और बिना किसी आसरे के
दुनिया को दिखलाओ
कि मैँ एक बहादुर शहीद का बेटा हूँ ।

और अन्त मेँ
मेरे प्यारे देशवाशियोँ !
शहीद के मरने के बाद
उसकी शहादत को
जिन्दा रखना सीखो
न कि सिर्फ फूल- मालायें चढ़ाकर
अपने कर्तव्यों की  इतिश्री 
और मरने के बाद हमें
हमेशा के लिये मार देना ।
' जयहिंद '

Tuesday, December 7, 2010

छलिया प्रेमी

बहुतै  दिन से  हम सोंचत  रहनी की कौनों भोजपुरिया मिठास के साथ पोस्ट  ले आयीं. आज आपन पुरनका डायरी हाथ मे लागल तै आपन लिखल एक गो पहिली लघुकथा  हाथ लागल और उहो भोजपुरी  में , बस तै इकरा के आप लोगन के समने अवले  में तनिकों देर ना लागल............एक बात अऊर की ये कहानी के साथ एक गो अऊर कहानी जुडल बाये की जब ई अख़बार में छपे के खातिन गइल तै स्वीकृति तै हो गइल बके इकरा के हिंदी में तब्दील कैले के शर्त पर   . मगर हम दूसर कहानी भेंज दिहनीं बजाये एकरा में  तब्दीली के. काहे से की ई आपन के  पहिली लघुकथा रहल अऊर आज भी ई डायेरी के शोभा बाये ...( तै पेश बाय  आपन  ११ नव . १९९६  के लिखल पहिली लघुकथा  " छलिया प्रेमी "  )
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 सुबह जब  बुढाए  के साँझ के गोदी  सोवै  जात रहल तै वो बेला में रजमतिया के खेत के मेडी से गुजरत देख मिसिर के लौंडा रतन  के मन मचल गएल . आपन इशारा से रतन रजमतिया के मकई  के खेते में बुलावनै .
" ना बाब ना ,  केहू देख लेई तै का होई  " रजमतिया सकुचात  आपन बात कही के भागे  लागल.
" अरे नाहीं रे केहू देखि लेई तै का हो जाई. हम तै तोहरा से  पियार  करी  ला " रतन आपन  बाहीं कै सहारा देत रजमतिया से बोलनै.
" अगर कुछो गड़बड़ भई गयेल तब "
" तब का हम तोहरा से वियाह कई लेबी "
" अऊर  अगर जात बिरादरी कै चक्कर पड़ी गयेल तब "
" हम अपने साथै तुहके शहरवा भगा ले चालब ना........ " रतन रजमतिया के अपने  पहलु में समेटत कहने .
रजमतिया भी अब एतना आसरा  पाके मन से  गदगद हो गइल  और अपने भविष्य कै सपना सजावत   समर्पण कै दिहले.
कुछे देर बाद मिसिर बाबा अपने खेते के निगरानी बदे  वहां से गुजरने तै कुछ गड़बड़ कै आशंका तुरंते भाप  चिल्लैनन " कौने हई रे खेतवा में.. .. आज  लगत बाये कुल मकई टुटी  जाई ."
उधर रजमतिया के गाले  पै  रतन कै थप्पड़ पड़ल और चिलाये के कहनै ," दौड़िहा  बाबू जी हम रजमतिया के पकड़ लिहले बानीं ."  इ ससुरी आज मकई तोरै बदे खेत में घुसल रहे , " रजमतिया के तनिको  ना समझ  में आवत  की ई   का  होत बाये. मगर रतानवा  सब  समझ  गयेल रहेल की   अब  रजमतिया के ही चोर   साबित  कईके उ  रजमतिया से पीछा  छुड़ा  सकत  हवे . काहें के  की अब रजमतिया के भोगले के बाद अब उमें रतन कै तनिको इच्छा ना रही गएल रहल .  अऊर इसे उ बिल्कुले पाक साफ बच जात रहने अपने बाप    के नज़र मे.
फिर  तै  मिसिर  बाबा अऊर    रतन   दोनों  रजमतिया पै सोंटा और लात - घुसन    कै बौछार कई देहेनें. इधर रजमतिया छलिया प्रेमी के ठगल बस देखत रही गएल.