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Saturday, July 31, 2010

अपवित्र गंगा



बहुत बडा हुआ था सम्मेलन
दूर - दूर से बडे बडे नेता
एवं गणमान्य व्यक्ति
पधारे हुये थे
विषय था
गंगा के पवित्र जल को
गंदा व अपवित्र होने से
बचाने का ।

अतिथि महोदय यानि मंत्री जी
फरमा रहे थे आराम
फूल की माला व हारों के बीच
एक अच्छे व दमदार भाषण से
माहौल को गर्म कर देने के बाद।

अचानक बज उठी थी घंटी
अतिथि महोदय के मोबाइल की
"साहब-मिल मजदूरों ने
वेतन-वृध्दि के लिये
कर दी है हडताल।"

सबने देखा था आश्चर्य से
मोबाइल पर बदलते हुए
अतिथि महोदय के चेहरे का भाव
" जलाकर सालों को
बहा दो गंगा में
ताकि किसी को इसकी
खबर तक न लगे । "
(यह चित्र इलाहाबाद के संगम का है)

Saturday, July 24, 2010

दिल के टुकड़े

वह लोगों के बीच
रोज़ सुनाया करता था
जिनकी मुहब्बत के
चर्चे हज़ार
एक दिन कर गयी वो
उसके दिल के टुकड़े हज़ार
फिर बड़ी अदा से मुस्कराई
और बोली थी -
" दिल के कुछ टुकड़े
हो सके तो मुझे भी दे दो
बच्चे हमारे खेलेगे".

Friday, July 23, 2010

मुख्यमंत्री जी सुनिए !

(ये कविता एक निरक्षर महिला मतदाता के शब्दों की सिर्फ कलम भर है )

मुख्यमंत्री जी !

हमें पता चला है की
आप और आप के मंत्री लोग
हजारो
के बेड पे चैन की नींद सोते है
करोड़ो के नोट की मालाओं से
मंच पर आप सबका स्वागत होता है
मंच पर सोने चांदी के सिक्के से तौला जाता है

तीन साल हो गए आप लोंगो को
दर्शन दिए हुए
तब और आज में
बहुत हो गया है अंतर :-
जब पिछली बार आप लोग आये थे
तबसे बिटिया बहुत बड़ी हो गयी है
मगर कॉलेज नहीं जाती
क्योंकि उसके गले में
एक अदद दुपट्टा नहीं है ।

हम जमीं पर सोया करते है
क्योंकि हमारे पास जो खटिया थी
कुछ ही दिन पहले टूट गयी है
और अब शायद फिर कभी बने
( हा ये वही खटिया थी
जिसपर कुछ दिन पहले
एक युवराज आकर बैठे थे और
हमारी थाली में खाना खाए थे )
क्योंकि हरिया के पापा तो कुछ दिन पहले ही
बैंक के कर्ज के बोझ तले पेड़ से लटक चुके है।

महगाई तेजी से बढ रही है
इसलिए आप लोग भारत बंद पर है
मगर सुना है गोदामों में अन्न सड़ रहे है
और कल पड़ोस का चिंटू भूख से मर गया

सुना है करोडो के कही पार्क बन रहे है
रातो -रात शहर के नक़्शे बदल रहे है
मगर हमें चिंता है की कही इस बारिष में यह
झोपड़ी बचेगी या नहीं
नहीं तो जब आप लोग जब अगली साल
हमारे घर आयेगे वोट माँगने
या फिर कोई दूसरा युवराज ही गया
तो कैसे मै करूगी आव-भगत

और सुनिए गाँव में एक स्कूल था
जिसकी छत इस बारिश में गिर चुकी है
और स्कूल चल रहा है खुले में आसमान के नीचे

कहने को तो बहुत कुछ है
मगर ये सब में आज क्यों लिखवा रही हूँ
दो साल बाद तो आप लोग आयेगे ही
अपने लुभावने वादों के साथ वोट मांगने
तो खुद ही देख लीजियेगा

हाँ एक बात और
इस बार आप लोंगो को हरिया नहीं मिलेगा
इस गाँव के मोड़ पर अगवानी करने के लिए
क्योकि पिछली बार चुनाव के एक दिन पहले
किसी ने कच्ची शराब पीलाकर लेली थी उसकी जान

और हा, इस सवाल के जबाब के लिए
तैयार होकर आइयेगा कि
क्या यही प्रजातंत्र है ?
वर्ना सिंहासन कर दीजिये खाली
की जनता रही है राजधानी में
एक सवाल और
क्या इस प्रजातंत्र में ये संभव है कि एक दिन
सिर्फ एक दिन आप लोग हम सबकी जिंदगी जिए
और हम सब आप की। ।

--हस्ताक्षर --
( आप के सूबे की एक चालीस वर्षीया भूखमरी के कगार पर पहुंची एक निरक्षर महिला मतदाता )


"यह पत्र देश के शासक वर्ग से गरीब जनता का सिर्फ एक सवाल है की उनकी जबाबदेही हमारे प्रति कहा
तक है । क्या वो हमारे पास सिर्फ पांच साल के बाद ही आया करेगे ?"

Friday, July 2, 2010

उड़ान

ललक है बाकी अभी उड़ने की अगर तो
मुश्किल है ये कहना कि आसमां न मिले
राहे हैं बडी मुश्किल तो क्यों न होती रहें
जरूरी नहीं कि पत्थरों पर निशां न बने
बुझ सकती है शमां तुफां से मगर
जरूरी नही कि दुबारा फिर शमां न जले
मुश्किल है कि एक मुकर्रर जहां न मिले
मगर ये तो नही कि कछ भी यहां न मिले
तुम कोशिस करो तो सही ये जरूरी नहीं कि
पहले से बेहतर फिर आशियां न बने ।।